मां-बाप दूसरी शादी करते हैं तो बच्चों को कैसा लगता है
"बचपन से जिस कमरे के बारे में बताया गया हो कि मम्मी-पापा का बेडरूम है, उस रूम में जाने वाला शख़्स अगर बदल जाए तो बुरा तो लगता ही है. लेकिन धीरे-धीरे देखने की आदत हो जाती है...फिर कुछ अजीब नहीं लगता."
अकांक्षा अब उस दूसरी औरत को अपनी मां मान चुकी हैं और खुश हैं, लेकिन तब इस नए रिश्ते को अपना मान पाना उनके लिए बहुत मुश्किल था.
पर सबका अनुभव एक-सा नहीं होता है. कॉफ़ी विद करण में आई सैफ़ अली ख़ान और अमृता सिंह की बेटी सारा अली ख़ान की यादें और बातें अकांक्षा से थोड़ी अलग हैं.
सैफ़ को अब्बा कहने वाली सारा, करीना को छोटी मां नहीं कहतीं हैं. उनका मानना है कि जिस दिन उन्होंने करीना को छोटी मां कह दिया उनका नर्वस ब्रेकडाउन हो जाएगा.
उनका सपना है कि वो किसी दिन करीना के साथ शॉपिंग पर जाएं. लेकिन क्या 'सौतेले' रिश्ते इतने दोस्ताना हो सकते हैं? इस पर सारा कहती हैं, "अब्बा और करीना की शादी थी. मम्मा ने ख़ुद अपने हाथों से मुझे तैयार किया और हम अब्बा की शादी में गए."
सारा का मानना है कि जो हुआ वो अच्छा हुआ. चाहे वो उनके माता-पिता का अलग होना हो या फिर उनके पिता का करीना से शादी करना.
"कम से कम आज हम सभी खुश हैं...जो जहां है खुश है. "
इस चैट शो पर जैसी बातें सारा ने कीं, फ़रहान अख़्तर और ज़ोया अख़्तर भी कर चुके हैं.
ज़ोया-फ़रहान और शबाना आज़मी का रिश्ता भी कुछ ऐसा ही है. शबाना, जावेद अख़्तर की दूसरी पत्नी हैं और फ़रहान-ज़ोया उनकी पहली पत्नी हनी ईरानी के बच्चे हैं.
फ़रहान ने चैट शो में कहा था कि शुरू में उन्हें अपने पिता से शिकायतें थीं. लेकिन बाद में शबाना से रिश्ते अच्छे हो गए. हालांकि इसका ज़्यादा श्रेय वो शबाना को ही देते हैं क्योंकि उन्होंने कभी भी असहज महसूस नहीं कराया.
मां-बाप की वो लत, जो बच्चों के लिए हानिकारक है
पर क्या इस तरह के रिश्तों को स्वीकार कर पाना इतना आसान होता है?
रिलेशनशिप एक्सपर्ट निशा खन्ना मानती हैं कि इन रिश्तों को स्वीकार कर पाना आसान नहीं होता है क्योंकि ये रिश्ते किसी पुराने रिश्ते की जगह लेने के लिए आते हैं और किसी भी बच्चे के लिए अपनी पुरानी यादों और भावनाओं को मिटाकर नए रिश्ते में जुड़ना मुश्किल होता है.
दिल्ली में पढ़ाई करने वाले अनुराग ऐसे अनुभव से गुज़र चुके हैं और उनका मानना है कि किसी भी नए रिश्ते को स्वीकार कर पाना आसान नहीं होता और ऐसे रिश्ते एक पुराने रिश्ते की जगह पर आते हैं, ऐसे में मुश्किल तो होती है.
अनुराग उस समय 7वीं में थे जब उनकी मां की मौत हो गई थी. तीन भाई बहनों में सबसे बड़े अनुराग बताते हैं कि उनके पापा ने उनकी मां के गुज़रने के दो महीने बाद शादी कर ली थी.
अपनी नई मां से पहली बार मिलने वाले उस वक़्त को याद करते हुए अनुराग कहते हैं, "पापा, जब उनके साथ घर आए तो मैं अपने भाई-बहनों के साथ टीवी देख रहा था. उन्होंने कहा ये आपकी मम्मी हैं. हमने कुछ कहा तो नहीं, लेकिन उनसे बिना बात किये मैंने उन्हें दुष्ट मान लिया था. पता नहीं क्यों ये सोच लिया था कि इन्हीं की वजह से मेरी मम्मी मरी होंगी."
अकांक्षा अब उस दूसरी औरत को अपनी मां मान चुकी हैं और खुश हैं, लेकिन तब इस नए रिश्ते को अपना मान पाना उनके लिए बहुत मुश्किल था.
पर सबका अनुभव एक-सा नहीं होता है. कॉफ़ी विद करण में आई सैफ़ अली ख़ान और अमृता सिंह की बेटी सारा अली ख़ान की यादें और बातें अकांक्षा से थोड़ी अलग हैं.
सैफ़ को अब्बा कहने वाली सारा, करीना को छोटी मां नहीं कहतीं हैं. उनका मानना है कि जिस दिन उन्होंने करीना को छोटी मां कह दिया उनका नर्वस ब्रेकडाउन हो जाएगा.
उनका सपना है कि वो किसी दिन करीना के साथ शॉपिंग पर जाएं. लेकिन क्या 'सौतेले' रिश्ते इतने दोस्ताना हो सकते हैं? इस पर सारा कहती हैं, "अब्बा और करीना की शादी थी. मम्मा ने ख़ुद अपने हाथों से मुझे तैयार किया और हम अब्बा की शादी में गए."
सारा का मानना है कि जो हुआ वो अच्छा हुआ. चाहे वो उनके माता-पिता का अलग होना हो या फिर उनके पिता का करीना से शादी करना.
"कम से कम आज हम सभी खुश हैं...जो जहां है खुश है. "
इस चैट शो पर जैसी बातें सारा ने कीं, फ़रहान अख़्तर और ज़ोया अख़्तर भी कर चुके हैं.
ज़ोया-फ़रहान और शबाना आज़मी का रिश्ता भी कुछ ऐसा ही है. शबाना, जावेद अख़्तर की दूसरी पत्नी हैं और फ़रहान-ज़ोया उनकी पहली पत्नी हनी ईरानी के बच्चे हैं.
फ़रहान ने चैट शो में कहा था कि शुरू में उन्हें अपने पिता से शिकायतें थीं. लेकिन बाद में शबाना से रिश्ते अच्छे हो गए. हालांकि इसका ज़्यादा श्रेय वो शबाना को ही देते हैं क्योंकि उन्होंने कभी भी असहज महसूस नहीं कराया.
मां-बाप की वो लत, जो बच्चों के लिए हानिकारक है
पर क्या इस तरह के रिश्तों को स्वीकार कर पाना इतना आसान होता है?
रिलेशनशिप एक्सपर्ट निशा खन्ना मानती हैं कि इन रिश्तों को स्वीकार कर पाना आसान नहीं होता है क्योंकि ये रिश्ते किसी पुराने रिश्ते की जगह लेने के लिए आते हैं और किसी भी बच्चे के लिए अपनी पुरानी यादों और भावनाओं को मिटाकर नए रिश्ते में जुड़ना मुश्किल होता है.
दिल्ली में पढ़ाई करने वाले अनुराग ऐसे अनुभव से गुज़र चुके हैं और उनका मानना है कि किसी भी नए रिश्ते को स्वीकार कर पाना आसान नहीं होता और ऐसे रिश्ते एक पुराने रिश्ते की जगह पर आते हैं, ऐसे में मुश्किल तो होती है.
अनुराग उस समय 7वीं में थे जब उनकी मां की मौत हो गई थी. तीन भाई बहनों में सबसे बड़े अनुराग बताते हैं कि उनके पापा ने उनकी मां के गुज़रने के दो महीने बाद शादी कर ली थी.
अपनी नई मां से पहली बार मिलने वाले उस वक़्त को याद करते हुए अनुराग कहते हैं, "पापा, जब उनके साथ घर आए तो मैं अपने भाई-बहनों के साथ टीवी देख रहा था. उन्होंने कहा ये आपकी मम्मी हैं. हमने कुछ कहा तो नहीं, लेकिन उनसे बिना बात किये मैंने उन्हें दुष्ट मान लिया था. पता नहीं क्यों ये सोच लिया था कि इन्हीं की वजह से मेरी मम्मी मरी होंगी."
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