भाजपा ने भोपाल से दिग्विजय के खिलाफ साध्वी प्रज्ञा को टिकट दिया, इंदौर सीट पर अभी भी फैसला नहीं

भोपाल. मध्यप्रदेश की भोपाल लोकसभा सीट से भाजपा ने साध्वी प्रज्ञा ठाकुर के नाम पर मुहर लगा दी। वे पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह के खिलाफ चुनाव लड़ेंगी। इस सीट से पहले पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को टिकट दिए जाने की चर्चा थी। लेकिन माना जाता है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने साध्वी प्रज्ञा का नाम आगे बढ़ाया जो मालेगांव ब्लास्ट केस में एनआईए की जांच से गुजर चुकी हैं।

भाजपा ने साध्वी प्रज्ञा समेत चार उम्मीदवारों की सूची बुधवार को जारी की। इंदौर लोकसभा सीट पर अब तक भाजपा का प्रत्याशी तय नहीं हो सका है, जहां से 8 बार से सुमित्रा महाजन सांसद हैं। वे इस बार चुनाव लड़ने से इनकार कर चुकी हैं।

यह मेरे लिए धर्मयुद्ध है- साध्वी प्रज्ञा
टिकट की घोषणा से पहले साध्वी प्रज्ञा ने पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और भाजपा के संगठन महामंत्री रामलाल समेत कई नेताओं से मुलाकात की। भाजपा प्रदेश कार्यालय से निकलने के बाद साध्वी ने कहा कि मेरे लिए कोई चुनौती नहीं है। ये धर्मयुद्ध है और हम इसे जीतेंगे। मैंने पार्टी के कई नेताओं से मुलाकात की। सबने तय किया है कि हम राष्ट्र के विरुद्ध षड़यंत्र करने वालों के खिलाफ लड़ेंगे। क्योंकि राष्ट्र सुरक्षा पहले है और बाकी चीजें बाद में।

प्रज्ञा ने कल ली भाजपा की सदस्यता
एक सवाल के जवाब में प्रज्ञा ने बताया कि वह मंगलवार (16 अप्रैल) को पार्टी की सदस्यता ले चुकी हैं। कई नामों पर चर्चा और असमंजस के स्थिति के बाद भाजपा से आखिर में प्रज्ञा का नाम तय माना जा रहा है। प्रज्ञा मालेगांव धमाके के बाद सुर्खियों में आई थीं।

संघ ने प्रज्ञा का नाम आगे बढ़ाया था: बताया जा रहा है कि प्रज्ञा के नाम पर सहमति बनाने में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) ने अहम भूमिका निभाई। यह उनका पहला चुनाव है। भोपाल सीट से उम्मीदवारी को लेकर नरेंद्र सिंह तोमर, शिवराज सिंह चौहान, महापौर आलोक शर्मा और वीडी शर्मा के नाम पर पार्टी स्तर पर खासी मशक्कत हुई, लेकिन संघ ने प्रज्ञा का नाम बढ़ा दिया।

ऐसा माना जाता था कि ख़ुद योगी इस सीट को दोबारा हासिल करने के लिए बेचैन होंगे और पार्टी इसके लिए हर संभव रणनीतिक उपाय अपनाएगी. ऐसा दिखा भी.

पार्टी ने कार्यकर्ताओं के बीच लगातार कार्यक्रम तो किए ही, इस इलाक़े के सबसे रसूखदार निषाद घराने की वारिस पूर्व विधायक राजमति निषाद और उनके बेटे अमरेंद्र निषाद को सपा के खेमे से तोड़कर भाजपा में लाने जैसा मास्टरस्ट्रोक भी पेश किया.

गोरखपुर लोकसभा सीट पर साढ़े तीन लाख की संख्या वाली निषाद आबादी निर्णायक हैसियत रखती है. लिहाज़ा समझा जा रहा था कि गठबंधन के संभावित प्रत्याशी और मौजूदा सांसद प्रवीण निषाद के ख़िलाफ़ अमरेंद्र निषाद ही भाजपा के अमोघ अस्त्र होंगे.

लेकिन इस बीच अचानक एक ज़बर्दस्त अप्रत्याशित घटनाक्रम के चलते निषाद पार्टी का सपा-बसपा गठबंधन से रिश्ता टूट गया और 24 घंटे के भीतर उसने भाजपा से रिश्ता जोड़ लिया.

कुछ ही दिनों बाद इलाक़े के दूसरे बड़े निषाद नेता प्रवीण निषाद भी भाजपा के पाले में आ खड़े हुए. यहीं से टिकट की उलझन शुरू हो गई.

दो निषाद दावेदारों के अलावा क़तार में भाजपा के पुराने कार्यकर्ता और क्षेत्रीय अध्यक्ष रहे उपेंद्र दत्त शुक्ल भी थे जो उपचुनाव में भाजपा प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़ चुके थे.

उनके पैरोकारों का दावा था कि बदली परिस्थितियों में उनकी जीत पक्की है. तर्क यह भी दिया जाता था कि दीगर वजहों से कथित रूप से उपेक्षित महसूस कर रहे ब्राह्मण समुदाय (जिसके तक़रीबन तीन लाख मत हैं) को साथ में बनाए रखने के लिए उपेंद्र को टिकट दिया जाना उचित होगा.

हालांकि, उनकी उम्मीदवारी पर संशय भी लगातार बरक़रार रहा. नाम छिपाने की शर्त पर भाजपा के तमाम नेता यह कहते मिल जाते हैं कि उपेंद्र दरअसल योगी के पसंदीदा प्रत्याशी नही हैं. इस पसंद-नापसंद की जड़ें इलाक़े की पुरानी राजनीति में धंसी हुई हैं. रोचक बात यह कि इस पर कोई बोलने को तैयार भी नहीं.

दरअसल, इस सीट पर ढेरों पेच हैं. यह योगी के प्रभुत्व का क्षेत्र है, लिहाज़ा यह तय था कि प्रत्याशी चयन में उनकी बात मानी जाएगी. अमित शाह और जगत प्रकाश नड्डा सहित पार्टी के तमाम बड़े नेताओं ने बीते कुछ हफ़्तों में बार-बार बैठकें कीं, दर्जनों फ़ीडबैक लिए.

पार्टी के नगर विधायक डॉक्टर राधा मोहन दास अग्रवाल, क्षेत्रीय अध्यक्ष धर्मेंद्र सिंह और योगी के क़रीबी विधायक महेंद्र पाल सिंह की शक्ल में रोज़ नए-नए नाम भी उछलते रहे. तभी यह साफ़ हो गया था कि पार्टी कोई बाहरी नाम ला सकती है.

रवि किशन का नाम हालांकि पिछले हफ़्ते भी चला था मगर ख़ुद रवि किशन ने तब अपनी पसंदीदा और पुरानी सीट जौनपुर (जहां से वह एक बार कांग्रेस के टिकट पर लड़ भी चुके हैं) से टिकट की इच्छा जताई थी.

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